Tuesday, August 5, 2014

main likhta kyun hun


कभी कभी मैं सोचता हूँ, मैं लिखता क्यों हूँ 

क्या मालूम 

हाँ इतना ज़रूर जानता हूँ कि जब लिखता हूँ तो अच्छा लगता है। और अक्सर जब मुड़ कर पुराना लिखा कुछ पढ़ता हूँ तो मज़ा आता है।  

चलो यह पहेली सुलझी मानो- मज़े के लिए लिखता हूँ।  

अब कोई पूछे भला, अगर लिखते हो, और लिखने में मज़ा आता है; तो फिर यह सवाल क्यों, की लिखता क्यों हूँ!

मसला यह है कि लिखने में इतना मज़ा आता है, कि कई बार मज़े की तलाश में जान बूझ कर लिखने  बैठ जाता हूँ। और जब ज़िद्द से बैठो ना, तो लिखते नहीं बनता।  सूझता नहीं क्या लिखूं।  फिर मन मचल उठता है, और सवाल खड़ा होता है- मैं लिखता क्यों हूँ।  

चलो बहरहाल दोनो बातों के जवाब मिल गए।  और आप समझ ही सकते हैं कि आज लिखने को कुछ था नहीं।  सो … 

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